पुनर्मिलन – एक अधूरी मुस्कान की कहानी-
बरसों बीत गए थे…
गाँव के उस छोटे से रेलवे स्टेशन पर अब भी वही पुरानीघड़ी टंगी थी, जो हर रोज़ समय बताती थी —
लेकिन कुछ इंतज़ार अब भी थमा हुआ था।रामकिशोर ने अपने झुर्रियों भरे हाथों से पुराना लिफ़ाफ़ा सहलाया। लिफ़ाफ़े पर लिखा था — “तुम लौट आओ तो मेरी दुनिया फिर से बस जाएगी — तुम्हारा पिता।
”वो लिफ़ाफ़ा उसने 22 साल पहले अपने बेटे को भेजा था,
जो गुस्से में शहर चला गया था “सपने देखने
”और“ज़िन्दगी बनाने”
फिर कभी लौटा नहीं।
कभी खत नहीं आया, कभी खबर नहीं मिली। बस उम्मीद का एक दिया हर शाम टिमटिमाता रहा, उसी स्टेशन के पास, उसी बेंच पर।
आज स्टेशन पर भीड़ थी। शहर से स्पेशल ट्रेन आई थी — “दिल्ली से प्रयागराज।
”लोग उतर रहे थे, हँस रहे थे, कोई रो रहा था, कोई सामान संभाल रहा था।
पर रामकिशोर की आँखें केवल एक चेहरे की तलाश में थीं
वही चेहरा जो कभी “बाबूजी” कहकर गले लग जाता था
बगल में बैठी थी उसकी पत्नी — गुमसुम, चुप।
उनकी आँखों में अब आंसू नहीं थे, बस एक सन्नाटा था।
इतने वर्षों में रो-रोकर आँखों का पानी सूख चुका था।
ट्रेन के आख़िरी डिब्बे से एक युवक उतरा —
चेहरा झुर्रियों से भरा, पर मुस्कान में वही पुराना अपनापन।
वो झुककर स्टेशन की मिट्टी को छूता है। कंधे पर एक छोटा थैला, हाथ में एक पुरानी तस्वीर —
माँ-बाप की, जो उसके पास बची एकमात्र याद थी।
रामकिशोर ने देखा —
पलभर को उसे लगा, शायद सपना है।
वो उठकर लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ा —
“रवि… बेटा…”आवाज़ काँप गई।
युवक ने मुड़कर देखा —
वो रुक गया…
आँखें भर आईं…एक पल के लिए सब कुछ थम गया —
ट्रेन की सीटी, भीड़ का शोर, यहाँ तक कि हवा तक।
रवि ने दौड़कर पिता को गले लगा लिया।
दोनों फूट-फूटकर रो पड़े।
बूढ़े पिता की छाती से लगा वह बच्चा जैसे 22 साल बाद फिर छोटा हो गया।
माँ ने कांपते हाथों से बेटे के बालों को सहलाया,
पर शब्द नहीं निकले — बस आँसू बह निकले।
रवि बोला – “बाबूजी… माफ़ कर दो… ज़िन्दगी बना ली, पर घर खो गया…
”रामकिशोर की आँखों से आँसू टपके और बोले –
“ज़िन्दगी तो अब मिली है बेटा, जब तू लौट आया…
”स्टेशन पर सब लोग रुक गए,
किसी ने हाथ जोड़कर उस दृश्य को देखा,
किसी ने आँसू पोंछ लिए।
जैसे खुद उनके दिल के ज़ख्म भी भर गए हों।
शाम ढल चुकी थी —
सूरज की आख़िरी किरणें जब पिता-बेटे के आँसुओं पर पड़ीं,
तो लगा जैसे ईश्वर ने भी कह दिया हो —
“अब यह बिछड़न नहीं, यह पुनर्मिलन है।
”रामकिशोर की गोद में सिर रखे रवि बोला —
“बाबूजी, अब कभी नहीं जाऊँगा…”
और पिता मुस्कुरा दिए —
“अब जाने की ज़रूरत नहीं बेटा, अब घर लौट आया है तू…”
धीरे-धीरे ढोलक की आवाज़ आई… मंदिर में आरती शुरू हो गई…
माँ की आँखें बंद थीं, और उनके होंठों पर बस एक शब्द था
“धन्यवाद प्रभु… मेरा बेटा लौट आया।”
यह पुनर्मिलन सिर्फ़ दो लोगों का नहीं था,
बल्कि उम्मीद, क्षमा और प्रेम की जीत का था।
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