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RSS की विचारधारा

Oct 01, 2025  Brij Lal Lodhi  14 views

*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा:-*

*जातीय संरचना और ब्राह्मणवादी प्रभाव पर — एक आलोचनात्मक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषण:*

*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है जिसकी स्थापना 27 सितंबर 1925 को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गई। आज यह संगठन भारतीय जनता पार्टी (BJP), विश्व हिंदू परिषद (VHP), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) जैसे दर्जनों संगठनों का वैचारिक आधार है।*

*लेकिन एक केंद्रीय प्रश्न लंबे समय से उठता रहा है कि:* *क्या RSS हिंदू राष्ट्र की आड़ में ब्राह्मणवादी प्रभुत्व को बढ़ावा दे रहा है? यह लेख इसी प्रश्न की पड़ताल कर रहा है।*

*RSS की मूल विचारधारा क्या है ?*

*आरएसएस की मूल विचारधारा हिंदुत्व है,*
*भारत में आरएसएस का हिंदू राष्ट्र भौगोलिक नहीं, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है।*
*जिसमें हिंदू एकता जाति, भाषा, प्रांत से ऊपर है। आरएसएस धर्मांतरण, मुस्लिम तुष्टीकरण, और धर्मनिरपेक्षता का विरोध करता है। यह एक मजबूत राष्ट्र और सैन्य शक्ति का समर्थन करता है। यह अहिंसा का विरोध, विशेषकर गांधीवादी विचारधारा का विरोध करता है।*

*RSS का वैचारिक आधार सावरकर की पुस्तक Hindutva और गोलवलकर की We or Our Nationhood Defined पर आधारित है। इसकी जातीय संरचना व नेतृत्व में उच्च जातियों का वर्चस्व है। आरएसएस के सभी सर संघचालक जिसमें डॉ. हेडगेवार, गोलवलकर, देवरस — सभी चितपावन ब्राह्मण थे।इनकी शाखाओं  में प्रमुखों, प्रचारकों और दार्शनिकों का बहुमत प्रारंभ से अबतक ब्राह्मण या सवर्ण वर्ग से रहा हैं।*

*इस समय वर्तमान में --स्थानीय स्तर पर OBC, SC/ST कार्यकर्ता को शामिल किया जा रहा है लेकिन नीति निर्धारण, वैचारिक लेखन, और सर संघचालक जैसे पद आज भी अधिकांशतः ब्राह्मण या सवर्ण वर्गो का नेतृत्व ही हैं।*हाल के वर्षों में RSS ने दलित-आदिवासी क्षेत्रों में प्रचार तो बढ़ाया है, लेकिन संरचनात्मक समावेश नहीं किया। कुछ प्रचारात्मक घटनाओं (दलित के घर भोजन आदि) को सांकेतिक परिवर्तन के रूप में प्रचारित किया गया, न कि संस्थागत परिवर्तन के रूप में।*

*शुरू से लेकर आज तक RSS का आदर्श “मनु-स्मृति आधारित संस्कृति” है, न कि “समता आधारित संविधान”*

*गोलवलकर ने संविधान सभा की आलोचना करते हुए लिखा: "We should have the Manusmriti as our constitution."*

*संघ का आदर्श “आर्य-वैदिक-शास्त्र-सम्मत आधारित समाज” है — जिसमें गुरु, यज्ञ, वेद, संस्कृत को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जाति को कभी खुलकर नहीं नकारा गया — केवल "जातिगत संघर्ष न हो" का आग्रह किया गया।*

*आरएसएस की आरक्षण नीति     सामाजिक न्याय नहीं, “योग्यता की हानि” कहकर आलोचना किया गया।*
*दलित आंदोलनों को     "विभाजनकारी ताकत" कहकर नकारा गया।*
*बहुजन नेताओं की विचारधारा जैसे - बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, ईवी रामासामी पेरियार    की सराहना कभी नहीं की जाती, बल्कि विरोध छुपकर किया जाता है।*
*आरएसएस मनुस्मृति    का विरोध कभी नहीं करता, आरएसएस और बीजेपी के कई नेता इसे आदर्श ग्रंथ मानते हैं।*
*संघ की विचारधारा सत्ता में आने के बाद शिक्षा, नीति, इतिहास लेखन, सांस्कृतिक संस्थानों और न्यायिक नियुक्तियों पर प्रभाव डालती है।*

*नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP), NCERT पाठ्यक्रम, न्यायपालिका में “सामाजिक विविधता की अनुपस्थिति” — सभी में RSS की सांस्कृतिक वर्चस्ववादी नीति का हिस्सा है।*

*क्या RSS ब्राह्मणवाद को स्थापित करता है?*
*उत्तर -हां, कारण:*

*जाति प्रथा का न कभी विरोध किया गया, न समता के लिए वैकल्पिक संरचना बनाई गई।*

*सामाजिक न्याय और बहुजन अधिकारों को "विभाजनकारी" कहकर खारिज किया गया।*
*हालांकि:*
*संघ ने सामाजिक पहुंच बढ़ाई है, लेकिन सत्ता की कुंजी अभी भी ब्राह्मणवादी ढांचे में है।*यह समावेश नीचे से ऊपर नहीं, ऊपर से नीचे के रूप में रहा है।*

*प्रमुख किताबें:-*

*1. “हम या हमारी राष्ट्रीयता” — एम. एस. गोलवलकर*

*2. “Hindutva: Who is a Hindu?” — वी. डी. सावरकर*

*3. “The RSS: A View to the Inside” — वॉल्टर एंडरसन*

*4. “जाति, राष्ट्र और राष्ट्रवाद” — कांचा इलैया*

*5. “Post-Hindu India” — कांचा इलैया शेफर्ड*

*6. “RSS and the BJP: A Division of Labour” — ए. गोपालन।*

*"RSS अपने को सांस्कृतिक संगठन कहता है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा पर काम करता है,  उसके विचार, नेतृत्व और नीतियां ब्राह्मणवादी राष्ट्रवाद को ही आगे बढ़ाती हैं।*
*सामाजिक न्याय और समता के आधुनिक मूल्य उसके ढांचे में कहीं फिट नहीं बैठते।"*

*लेखक एक सामाजिक चिंतक हैं*


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