🩺 MBBS: सेवा का धर्म या व्यापार का माध्यम?
कभी डॉक्टर को “भगवान का दूसरा रूप” कहा जाता था,
क्योंकि वह जीवन देता था — बिना जाति, धर्म या पैसे का भेद किए।
पर आज सवाल उठता है —
क्या MBBS की डिग्री अब अच्छे इलाज के लिए है या ऊँची फीस के लिए?
🔹 डिग्री का मूल अर्थ:-
MBBS का अर्थ है Bachelor of Medicine and Bachelor of Surgery —
यानि चिकित्सा विज्ञान का वह प्रारंभिक ज्ञान जिससे व्यक्ति रोगी की पीड़ा हरने में सक्षम होता है।
इसकी आत्मा “सेवा” है, न कि “व्यापार”।
हर डॉक्टर हिप्पोक्रेटिक शपथ लेता है कि वह अपने ज्ञान का उपयोग रोगी के हित में करेगा।
🔹 आज की वास्तविकता:-
पर आज का मेडिकल सिस्टम कहीं न कहीं इस आदर्श से भटक गया है।
प्राइवेट कॉलेजों में MBBS की फीस 1–2 करोड़ तक पहुँच चुकी है।
छात्र वर्षों की मेहनत और कर्ज के बाद डॉक्टर बनते हैं —
और फिर समाज उनसे “मुफ्त सेवा” की उम्मीद करता है।
लेकिन यह भी सच है कि
मेडिकल शिक्षा की महँगी व्यवस्था ने डॉक्टरों को मजबूर कर दिया है
कि वे अपने करियर को सेवा से ज़्यादा निवेश समझें।
🔹 दो चेहरे – एक पेशा:-
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।
एक ओर कुछ डॉक्टर हैं जो हर मरीज को “कमाई का जरिया” समझते हैं,
तो दूसरी ओर ऐसे भी डॉक्टर हैं जो
गाँवों में, छोटे क्लीनिकों में, बिना सुविधा के भी लोगों की जान बचाते हैं।
वे ही चिकित्सा जगत की असली आत्मा हैं।
🔹 समाज और सरकार दोनों की भूमिका:-
अगर सरकार मेडिकल एजुकेशन सस्ती और सुलभ बनाए,
तो डॉक्टरों पर ऊँची फीस का बोझ नहीं रहेगा।
और अगर समाज डॉक्टर को “व्यवसायी” नहीं बल्कि “सेवक” समझे,
तो दोनों के बीच का भरोसा लौट आएगा।
🔹 निष्कर्ष:-
MBBS की डिग्री इलाज का धर्म सिखाती है,
लेकिन व्यवस्था ने उसे लाभ का माध्यम बना दिया है।
बदलाव तभी आएगा जब डॉक्टर फिर से “रोगी केंद्रित” होंगे,
और समाज उन्हें “सेवा के प्रतीक” के रूप में सम्मान देगा।
✍️ लेखक:
ब्रजलाल लोधी एडवोकेट, लखनऊ
(सामाजिक चिंतक एवं विचारक)
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