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अधूरी हवेली का रहस्य, भाग -3

Oct 03, 2025  Brij Lal Lodhi  12 views

अधूरी हवेली का रहस्य (भाग – 3)

अवनि का हाथ किसी ने कसकर पकड़ लिया था। उसने घबराकर पीछे देखा —
वहाँ एक युवा कलाकार खड़ा था, जिसकी आँखों में दर्द और तड़प थी। चेहरा वैसा ही जैसा पेंटिंग में दिखता था।

वह धीमे स्वर में बोला —
“अन्विता… तुम लौट आई हो। मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था।”अवनि हकलाकर बोली —
"मैं अवनि हूँ… अन्विता नहीं। तुम… कौन हो?"

युवक की आँखें नम हो गईं।
"मैं आरव हूँ… वही चित्रकार, जिससे तुमने वादा किया था कि तुम मेरे साथ रहोगी। लेकिन हवेली के मालिकों ने मुझे ज़िंदा दफना दिया था। तुम्हें याद नहीं…?"

अवनि का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। अचानक उसके सामने बीते हुए जन्म के दृश्य चमकने लगे —

वह उसी हवेली में राजसी वस्त्र पहने खड़ी थी।

आरव उसका हाथ थामे कह रहा था – "अन्विता, तुम ही मेरा जीवन हो।"

तभी गुस्से से भरे लोग आरव को पकड़कर हवेली के तहख़ाने में बंद कर रहे थे।

अन्विता रो रही थी… और सरोद की धुन अधूरी छूट गई थी।अवनि ने चीखते हुए आँखें खोलीं।
"ये… ये सब सच है? मैं सचमुच अन्विता थी?"

आरव ने सिर झुका लिया।
"हाँ, और तुम्हारे बिना मेरी आत्मा इस हवेली में कैद हो गई। इसीलिए हर रात मेरी धुन गूँजती है। अब सिर्फ़ तुम ही मुझे मुक्ति दिला सकती हो।"

अवनि ने काँपते हाथों से सरोद उठाया और आँखें बंद कर लीं।
जैसे ही उसने वह अधूरा राग पूरा किया, हवेली के झरोखों से तेज़ प्रकाश निकला, मानो सदियों से बँधा श्राप टूट रहा हो।

लेकिन तभी ज़मीन हिलने लगी, हवेली की दीवारें गिरने लगीं।
आरव ने अवनि का हाथ पकड़कर कहा —
"अगर तुम चाहो, तो हम दोनों की आत्माएँ अब साथ-साथ मुक्त हो जाएँगी। लेकिन अगर तुम चाहो, तो मैं अकेला चला जाऊँगा और तुम्हें जीवन जीने दूँगा।"

अवनि की आँखों से आँसू बह निकले।
अब उसके सामने सबसे बड़ा सवाल था —

 क्या वह पिछले जन्म का प्यार निभाते हुए हमेशा के लिए हवेली का हिस्सा बन जाएगी?
या फिर आरव को मुक्ति दिलाकर खुद इस जन्म में जीने का फैसला करेगी?


 


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