अधूरी हवेली का रहस्य (भाग – 2)
पीछे से आती आहट ने अवनि की रूह तक हिला दी। उसने कांपते हाथों से लालटेन पीछे घुमाई…
दरवाज़े पर एक सफ़ेद कपड़ों में खड़ा बुज़ुर्ग आदमी दिखा। चेहरा झुर्रियों से भरा, आँखों में अजीब-सी चमक।
वह धीमी आवाज़ में बोला –
"आख़िर तुम आ ही गई… मैंने सौ साल से तुम्हारा इंतज़ार किया है।"
अवनि हतप्रभ –
"आप… आप कौन हैं? और आप मुझे कैसे पहचानते हैं?"
बुज़ुर्ग ने मुस्कुराकर कहा –
"तुम्हारा नाम अवनि है, पर असलियत में तुम 'अन्विता' हो… वही लखनऊ हवेली की मालकिन, जो एक सदी पहले ग़ायब हो गई थी।"
अवनि की साँसें थम गईं।
"ये… ये झूठ है। मैं तो अभी पैदा हुई हूँ!"
बुज़ुर्ग ने धीरे से पेंटिंग की ओर इशारा किया।
"उस पेंटिंग को देखो… ये तुम्हारी ही छवि है। तुम अन्विता बनकर इस हवेली में रहती थीं। तुम्हारे साथ हुआ धोखा ही इस हवेली की बर्बादी की वजह बना।"
अवनि की आँखों में सवाल थे।
"कैसा धोखा? आखिर मेरे साथ क्या हुआ था?"
बुज़ुर्ग आगे बोला –
"अन्विता, तुमसे प्यार करने वाला युवक एक कलाकार था, जिसने ये पेंटिंग बनाई थी। लेकिन हवेली के मालिकों ने उसे मार डाला। उसी दिन से हवेली में उसका अधूरा संगीत गूंजता है… और तुम्हारी आत्मा का अधूरा इंतज़ार भी।"
अवनि के रोंगटे खड़े हो गए।
"मतलब… जो धुन मैं सुनती हूँ… वो उसी की है?"
बुज़ुर्ग –
"हाँ… और जब तक उस धुन को कोई पूरा नहीं करेगा, हवेली का श्राप नहीं टूटेगा। तुम ही हो जिसे ये अधूरा राग पूरा करना होगा।"
इतना कहते ही बुज़ुर्ग की परछाईं हवा में ग़ायब हो गई।
कमरे में सिर्फ़ सरोद की धुन रह गई… और अवनि के हाथ में वही पुराना सरोद आ गिरा।
उसने काँपते हाथों से तार छेड़े… और जैसे ही पहली धुन निकली…
हवेली की दीवारें हिलने लगीं, झरोखों से तेज़ रोशनी फूटने लगी, और बाहर पूरा गाँव जाग उठा।
लेकिन अचानक पीछे से किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया… और वही ठंडी आवाज़ कानों में गूँजी –
"तुम्हें भी उसका अधूरा साथ निभाना होगा, अवनि… हमेशा के लिए।"
अब सवाल है –
क्या अवनि वास्तव में पिछले जन्म की अन्विता है?
क्या वह हवेली के श्राप को तोड़ पाएगी?
या फिर वह खुद भी उसी हवेली का हिस्सा बन जाएगी…?
अगला भाग और एक रोमांचक रहस्य जिसमें हवेली का राज़ खुलता जाए?
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